Sunday, February 6, 2011

यातना

यातना एक मुसाफिर है,
जो ना गई अपनाई कहीं।
इस छोर से उस छोर ,
बंध गलियां,टूटे मोड।


कभी कभार मुझसे मिलने आती है,
अनचाही,घ्रिनाबिद्ध है यह रमनी,
और सबको लगता है ये उन्हें सताती है।

अपीरिचित नहीं उसकी कहानी,
तुम मानो या न मानो दोस्त,
वो तुमसे नहीं पराई है।

स्पर्शकातर एक मलीन काया,
ये खुदसे बातें करती है,
अँधेरी रातों में सिसकती आँहो में,
यही तो निखरती उभरती है।

द्वेष,ग्लानी,शय,हानि,
जब आगंतुक हुआ सखा दल।
जग के नातों ने मुह मोड़ा,
साया सी......ये साथ रही मेरे हर पल।

किसी कवि की रचना,
चाहत में डूबा एक इन्सांन,
लाचार थे तुम जब ई वो,
पर...कर गई तुमको बलवान।

झरने की कलरव सी शांत,
रेत के कण सी सम्पूर्ण,
अन्तरंग में बस्ती साथी ये जब,
जीवन होता है परिपूर्ण।

यातना अब मेरी सहेली है,
तो क्या अगर वो क्षणस्थाई है,
अब समझ आया तुम्हे,
क्यों वो..तुमसे भी नहीं पराई है?