कशमकश की ज़िंदग़ी में काश लेने की फ़ुरसत नहीं
जिन बाजुओं ने बनाई थी कभी बेजोड़ जंजीरे,
जंजीरों में लिपट कर आज उनमें ताकत नहीं,
औरों के लिए धड़कते हुए थक गयी है धड़कन,
ख़ुदा के जहाँ में खुद ही की कीमत नहीं,
पर बेड़ियों को तोड़कर जो निकल चुके हैं तारों तक
शक है मुझे के उन्हें भी राहत नहीं।
नमाज़ों में,अज़ानो में ,मन्नतों में बंधी ज़िंदगी,
सही और गलत की तान पे सधी ज़िंदगी,
आँसू,लहू,से लथपथ चला है जो इंसान
बहारों के चाव से उसे हो सकती मोहब्बत नहीं।
चिर-फार चुकी है दुनिया जिसका कलेजा,
उसने तो चित्रों को ही दौलतों सा सहेजा,
मंझधार में तूफ़ान से लड़ते माझी से पूछो
सैलाबों से प्यार है जिसे,उसे साहिल की आदत नहीं।
ना मिलें मंज़िलें तो गम क्या है
जो टिके ना आख़िरी दम तक वो शिद्दत नहीं,
पथ्रिलें जंजीरों को तोडती हुई बाज़ुएँ,
खुद टूट कर बिखर ना जाये तो उनमें हिम्मत नहीं,
है गर कशमकश में फसे रहना ज़िंदगी
मौत की बाहों में बांध नव्जों से पूछो,
क्या उन्हें भी दर्द की चाहत नहीं?
है यकीं मुझे की उन्हें भी राहत नहीं।
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some great person said..
ReplyDelete"milegi parindon ko bhi manjil...... ye faile hue unke par kehte hain
wahi rehte hain khamosh aksar.... jamane me jinke hunar bolte hain"
wahh ustaad!!
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